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उनकी खातिर कौन लड़े ? / राधेश्याम बन्धु
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उनकी खातिर कौन
लड़े जो ख़ुद से डरे-डरे ?
बचपन को बन्धुआ
कर डाला, कर्ज़ा कौन भरे ?
जिनका दिन गुज़रे भठ्ठी में
झुग्गी में रातें,
कचरे से पलने वालों की
कौन सुने बातें ?
बिन ब्याही माँ
बहन बन गई, किस पर दोष धरे ?
चूड़ी की भठ्ठी हो चाहे
कल खराद वाले,
छोटू के मुखपर ढाबे ने
डाल दिए ताले ।
पिता जहाँ
लापता, पुत्र किससे फ़रियाद करे ?
आतिशबाज़ी के मरुथल में
झुलस रहा बचपन,
भीख माँगता भटक रहा है
सड़कों पर जन-गण ।
सौ-सौ घाव
लगे बुधिया तन, मरहम कौन धरे ?
उनकी खातिर
कौन लड़े, जो ख़ुद से डरे-डरे ?