भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उनकी फ़ितरत है कि वे धोखा करें / हंसराज 'रहबर'
Kavita Kosh से
उनकी फ़ितरत है कि वे धोखा करें
हम पे लाज़िम है कि हम सोचा करें ।
बज़्म का माहौल कुछ ऐसा है आज
हर कोई ये पूछता है "क्या करें?"।
फिर जवाँ हो जाएँ दिल की हसरतें
कुछ न कुछ ऐ हमनशीं ऐसा करें ।
वो जो फ़रमाते हैं सच होगा मगर
हम भी अपनी सोच को ताज़ा करें ।
जो हुआ मालूम सब मालूम है,
दोस्तों से किस तरह शिकवा करें ।
घोंसले में कट रही है ज़िंदगी
कौन-सी परवाज़ का दावा करें ।
शह्र में सब नेक हैं, 'रहबर' बुरा
वे भला उसकी बुराई क्या करें ।
(09.05.1988, दिल्ली)