भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उनकी हमसे नज़र नहीं मिलती / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उनकी हमसे नज़र नहीं मिलती
अब किसी की ख़बर नहीं मिलती
 
रात पूनो की दिल में रहती थी
ख़ूब ढूँढा मगर नहीं मिलती
 
पाँव-प्यादे जहाँ चले थे कल
हमको अब वो डगर नहीं मिलती
 
जिसको सुनते ही बात बनती थी
बात वो बाअसर नहीं मिलती
 
उसके आते ही फूल खिलते थे
वो हवा अब इधर नहीं मिलती
 
लोग उठते ही पाँव छूते थे
अब कहीं वो सहर नहीं मिलती
 
साथ रहती थी चाँदनी छत पर
इन दिनों, भाई, घर नहीं मिलती
 
शेर कहने को कहते हैं वो भी
पर कहीं भी बहर नहीं मिलती