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उनकी हर रात-जूही फूल हुआ करती है / विनोद तिवारी

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उनकी हर रात जुही-फूल हुआ करती है
हमारी शाम भी तिरशूल हुआ करती है

आएगी फिर कभी बरसात हरे होंगे हम
दूब कब ग्रीष्म से निर्मूल हुआ करती है

वक़्त की तेज़ हवा तोड़ न पाए जिसको
रीढ़ मल्लाह की मस्तूल हुआ करती है

कैसे जानेंगे ग़लीचों पे फिसलने वाले
गाँव के रास्ते में धूल हुआ करती है

जी हाँ जब सारे सवालों का हो उत्तर पैसा
ज़िन्दगी दर्द का इस्कूल हुआ करती है

अपने शोषण पे न चौंकें वही मज़दूर भला
वरना हर ‘किरन्दूल’ <ref> खदान क्षेत्र जहाँ अपनी माँगों को लेकर संघर्षरत मज़दूरों पर गोली चली</ref> हुआ करती है

शब्दार्थ
<references/>