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उनके जलवे जो तरबनाक हुए जाते हैं / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी

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उनके जलवे जो तरबनाक हुए जाते हैं‍
दिल के अरमान भी बेबाक हुए जाते हैं‍

ज़िन्दगी साथ चले तेरे तो हम डूब गए
मौत की बाँहों मे‍ तैराक हुए जाते हैं

एक भी शख़्स उगाया है कभी तूने ज़मीं
कितने इन्सान तहे-ख़ाक हुए जाते हैं

रखे रखे ही ये औराके-क़िताबे-हस्ती
दीमके-वक़्त की ख़ूराक हुए जाते हैं

रोज़ो-शब, शामो-सहर वक़्त की गर्दिश पैहम
कूज़ागर हम भी तेरा चाक हुए जाते हैं

झूट, अय्यारी, हसद, हिरसो-हवस, मकरो-फ़रेब
अब तो इन्सान की पोशाक हुए जाते हैं

किसके क़दमो के निशानात हैं इस पर बेख़ुद
खम ज़मीं पर जो ये अफ़लाक हुए जाते हैं