भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उनके बगैर यूँ ही जी के भी क्या करें / जगदीश तपिश
Kavita Kosh से
उनके बगैर यूँ ही जी के भी क्या करें
रहने दो चाक दामाँ सी के भी क्या करें
मेरे साकिया सुना है तेरा जाम ज़िन्दगी है
जब टूट ही गया दिल पी के भी क्या करें
तुझे हमसफ़र समझकर चल तो दिए थे लेकिन
तेरे साथ कैसे गुज़री कह के भी क्या करें
सुनते हैं जलवागर है तू बुत में बुतकदे में
पत्थर के सामने हम रो के भी क्या करें
दुश्मन हैं तपिश दानाँ नादाँ हैं दोस्त दामन
ख़ाली रहे तो अच्छा भर के भी क्या करें