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उनके हाथों को थाम भूल गए / उत्कर्ष अग्निहोत्री
Kavita Kosh से
उनके हाथों को थाम भूल गए,
उलझने हम तमाम भूल गए।
बैठते थे कभी जो मिल-जुल के,
आज हम ऐसी शाम भूल गए।
राह जिसने दिखाई हम उसको,
चलके दो-चार गाम भूल गए।
हाय, हैलो हुए हैं अभिवादन,
आज हम राम-राम भूल गए।
जब वो आए तो बज़्म में शायर,
पढ़ते-पढ़ते कलाम भूल गए।
आप जब हमसफ़र हुए तब से,
हम भी अपना मक़ाम भूल गए।
देखकर मौत के फ़रिश्ते को,
शाह कुल इंतिज़ाम भूल गए।