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उनके ही वास्ते है ये रिश्ता रुक हुआ / रंजना वर्मा
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उनके ही वास्ते है ये रिश्ता रुका हुआ
माज़ी की है दहलीज़ पर परदा पड़ा हुआ
है सामने मगर न नज़र देख है सकी
हम ढूंढ़ रहे हैं उसे जो है गुमा हुआ
होतीं नहीं वसीयतें ग़म और जख़्म की
रख दे न कोई हाथ में कागज़ फटा हुआ
ख़्वाबों से नहीं दिल है बहलता ये आजकल
गुज़रा हुआ है वक्त अभी तक रुका हुआ
हर लम्हा कसकने लगा है दिल ये इस तरह
जैसे हो कोई पाँव में काँटा गड़ा हुआ
यादें हैं आस पास सदा दिल के रह रहीं
जैसे कमीज का हो गरेबाँ सिला हुआ
जो हाथ में है उस को तो सँभाल के रखो
अफसोस क्या करे कि जो खुद है लुटा हुआ