भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उनको नहीं है जब मेरे हालात का ख़याल / ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उनको नहीं है जब मेरे हालात का ख़याल।
आता नहीं है उनसे मुलाक़ात का ख़याल।

मेरी वज़ह से कोई भी तकलीफ में न हो,
रहता मुझे हमेशा ही इस बात का ख़याल।

जब जश्न घर में हो तो मने धूमधाम से,
रखिए पड़ोसियों के भी जज़्बात का ख़याल।

अपनी पे आ गए तो किया काम मन लगा,
दिन का रहा ख़याल न तब रात का ख़याल।

इस ज़िन्दगी को खेलिए शतरंज की तरह,
रहता नहीं है 'ज्ञान' को शै मात का ख़याल।