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उनसे-संसार, भव-वैभव-द्वार / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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उनसे-संसार,
भव-वैभव-द्वार।
समझो वर निर्जर रण;
करो बार बार स्मरण,
निराकार करण-हरण,
शरण, मरणपार।
रवि की छवि के प्रभात,
ज्योति के अदृश्य गात,
गन्ध-मन्द-पवन-जात,
उर-उर के हार।