Last modified on 19 दिसम्बर 2019, at 21:05

उनसे खुद ही संभलती नहीं ओढ़नी / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

उनसे खुद ही संभलती नहीं ओढ़नी।
मेरे घर में लगे किस तरह बोढ़नी।।

घर में दिखती कहाँ अब कहीं रोशनी।
अब तो घर में लगा आग दी कोढ़नी।।

खुशियां जो भी थी घर में सब मिट गई।
लाई दुल्हन बना आई धन-लोढ़नी।।

शादी करते समय वो कहे थे मुझे।
बेटी लक्ष्मी मेरी, है ये धन जोगनी।।

है तो सुंदर बहुत पर ये है भूतनी।
अब तो लगता मुझे है ये श्रम चोरनी।।

वक्त किसके लिये कब है ठहरा यहाँ।
मेरे घर देखिये आई घर फोड़नी।।