भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उनसे मिली नज़र के मेरे होश उड़ गए / हसरत जयपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उनसे मिली नज़र के मेरे होश उड़ गए
ऐसा हुआ असर के मेरे होश उड़ गए

जब वो मिले मुझे पहली बार, उनसे हो गईं आँखें चार
पास ना बैठे पल भर वो फिर भी हो गया उनसे प्यार
इतनी थी बस ख़बर के मेरे होश उड़ गए
उनसे मिली नज़र के मेरे होश उड़ गए

उनकी तरफ़ दिल खिंचने लगा, बढ़ के क़दम फिर रुकने लगा
काँप गई मैं जाने क्यूँ, अपने आप दम घुटने लगा
छाए वो इस कदर के मेरे होश उड़ गए
उनसे मिली नज़र के मेरे होश उड़ गए

घर मेरे आया वो मेहमान, दिल में जगाए सौ तूफ़ान
देख के उनकी सूरत को हाय रह गई मैं हैरान
तड़पूँ इधर उधर के मेरे होश उड़ गए
उनसे मिली नज़र के मेरे होश उड़ गए