उन्नीस सौ इक्कीस मैं / रणवीर सिंह दहिया
1921 में असहयोग आन्दोलन की लहर उठती है पूरे देश में। जगह-जगह पर प्रदर्शन, धरने किये जाते हैं। महात्मा गान्धी इस आन्दोलन के अग्रणी नेता थे। उधर ज्योतिबा फुले अपने ढंग से समाज सुधार आन्दोलन में सक्रिय थे। पुर्नुत्थान के साथ साथ नवजागरण का एक माहौल पूरे देश में बन रहा था। क्या बताया भला:
उन्नीस सौ इक्कीस मैं असहयोग आन्दोलन की जंग छिड़ी॥
सारे हिन्दुस्तान की जनता फिरंगी गेल्या आण भिड़ी॥
जलूस काढ़ते जगां जगा पै गांधी की सब जय बोलैं
भारत के नर नारी जेल गये जेल के भय तै ना डोलैं
कहैं जंजीर गुलामी की खोलैं आई संघर्ष की आज घड़ी॥
नौजवान युवक युवती चाहवैं देश आजाद कराया रै
कल्पना दत्त नै कलकत्ता मैं चला गोली सबको बतलाया रै
आजादी की उमंग उनमैं भरी नौजवान सभा बनी कड़ी॥
ज्योतिबा फुले का चिंतन दलितां नै बार बार पुकारै था
मनु नै जो बात लिख दी उन बातां नै जड़ तै नकारै था
नवजागरण की चिंगारी देश मैं सुलगी कई जगां बड़ी॥
एक माहौल आजादी का चारों कान्हीं जन जन मैं छाया रै
गांधी और भगतसिंह का विचार आपस मैं टकराया रै
रणबीर सिंह नै सोच समझ कै नये ढंग की कली घड़ी॥