मेरी गली की औरतें दुखियारी
विधवा हैं सारी
सब जी रही हैं ऐसे
मजबूरी में कोई रस्म निभाए जैसे मेरे जहन में कभी नहीं सोती है सारी गली रोती है रचनाकाल : 2001