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उन्हत्तर पूरे / शील
Kavita Kosh से
सोचा नहीं कभी आयु की आय की
रक्त में राष्ट्र का तेज अगोरे।
मानव मुक्ति की मुक्ति विशेष से
पूरने हैं अभी कार्य अधूरे।
आज का विश्व विषाद का विश्व है
तोड़ने होंगे विवाद कँगूरे।
इन्दुमती की प्रबोधनी कोख में
जन्मा किए हैं उन्हत्तर पूरे।
रचनाकाल : 15 अगस्त 1983