उन्हें ग़र यही ज़िद कि हम तोड़ देंगे।
हमें भी यही ज़िद दिषा मोड़ देंगे।
कभी आँधियों से डरे हैं नहीं हम,
नहीं पा सके जोे उन्हें क्र्रोड़ देंगे।
जिन्हें यह ज़माना नचाता रहा है,
सभी को खड़ाकर उन्हें जोड़ देंगे।
पुराने गए तो नए आ गए हैं,
वही रूप उनका न घर गोड़ देंगे?
जुटो साथियो यह लड़ाई कठिन है,
इसी से डरे हम न हक़ छोड़ देंगे।