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उन को क्या चाहने लगा हूँ मैं / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

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 उन को क्या चाहने लगा हूं मैं
ख़ुद से बेगाना हो गया हूं मैं

अपनी तस्कीने-बंदगी के लिये
नित नये बुत तराशता हूं मैं

तुझ को दिल में छुपाये बैठा हूं
देख लेता हूं जब भी चाहूं मैं

दाद दे२! तेरे इक इशारे पर
हंस के क़ुर्बान हो गया हूं मैं
 
लुटने वाले ख़ुशी से लुटते हैं
उन के लूटे कहां लुटा हूं मैं

क्या उठायेगा अब मुझे कोई
तेरी नज़रों से गिर गया हूं मैं

दिन हो या रात, सूरते-तस्वीर
आप की राह देखता हूं मैं

तेरा दरवेश हूं तेरे दर से
प्यार की भीक मांगता हूं मैं

सर हथेली पे रख के ऐ 'रहबर`
इश्क़ की राह हो लिया हूं मैं