भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उन जगहों की याद / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
हमें उन जगहों की याद आती है
जहाँ से हो कर हम यहाँ तक पहुँचे हैं
उन लोगों से मिलने की इच्छा उमगती है
जिन्होंने हमारे जीवन को गढ़ा है
ऐसे कई कृतघ्नताएँ हैं — जिनके लिए
क्षमा जैसे शब्द पर्याप्त नहीं है
जीवन के हाहाकार और आगे बढ़ने
हड़बोंग में छूट जाते हैं अनेक दृश्य
यहाँ तक कि हम पुल से गुजरते हुए
उस नदी को भूल जाते हैं
जिसे देखते हुए हम बड़े हुए हैं
हमें पता नहीं चलता कि जिस वृक्ष ने
हमें ताप और बारिश से बचाया है
उसे नक़्शे से ग़ायब हुए ज़माना
बीत चुका है
हम अपने होने और किसी के न होने
के बीच सही ढंग से सोचना भूल
चुके हैं