उन दिनों का ऋण / ओम निश्चल
उन दिनों का ऋण चुकाना
बहुत मुश्किल है।
मित्रता को तोल पाना
बहुत मुश्किल है।
एक लघु आकाश था,
रमने-विचरने के लिए
साइकिल पर बैठकर
उन्माद करने के लिए
छन्द की तुकबन्दियों में
कौन्ध थी सुख की
फ़िक्र होती थी नहीं
तब जागतिक दुख की
उन पलो को भूल पाना
बहुत मुश्किल है।
साथ हंसना-खिलखिलाना
और बतियाना
किसी कवि की कल्पना
में डूब-सा जाना
नई जिल्दें पुस्तकों की
क्या गज़ब ढातीं
गीत - कविताएँ हमें
सम्पन्न कर जातीं
फिर वही अहसास पाना
बहुत मुश्किल है।
मित्रताएँ आज ज़्यादा
दिन नहीं चलतीं
वक़्त जैसे बदलता है
दोस्ती ढलती
पर कभी होते यहाँ
अपवाद ऐसे भी
चार दशकों बाद भी
सम्वाद ऐसे ही
उन दिनों का लौट आना
बहुत मुश्किल है।
वह अवध की साँझ
वे दिन और वे बातें
और पलकों पर
थिरकती स्वप्नमय रातें
जेब ख़ाली पर
दिलों में धुर उजाला था
प्यार की इस सल्तनत
का ढब निराला था
लखनऊ तुमको भुलाना
बहुत मुश्किल है।
उन दिनों का ऋण चुकाना
बहुत मुश्किल है।