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उन दिनों / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
मैं बड़ा हुआ
एक विशाल छतनार
और उदार नीम की छाया में,
मैं बड़ा हुआ
हर साल नीम के सफ़ेद दूध को
बहता हुआ देखकर,
नीम की डालों पर मचकते
सावन के झूलों की पींगों के साथ-साथ
आसमान छू-छूकर बड़ा हुआ मैं,
दूर तक फैली शाखाओं के
पतझरों के साथ-साथ
मैं बड़ा हुआ
बड़ा हुआ मैं हर साल
नीम को झकझोरती आँधियों के बीच,
ईश्वर को जब भी कभी
पड़ती देवदूतों की ज़रूरत
नीम पर बसेरा करने वाले
परिन्दों या गिलहरियों पर ही
जाती उसकी नज़र
पालव की सघनता के बीच-बीच
झॉंकते आकाश के तारों को गिन-गिनकर
बड़ा हुआ मैं,
और जब मैं बड़ा हो चुका
तब से हर साल
नीम की एक-एक डाल
फट कर गिरने लगी,
नीम को गिरते हुए
सचमुच कहाँ देख पाया मैं
तब तक आँखों से
जा चुका था बचपन
और आँखें उलझ चुकी थीं
झाड़ियों में