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उन प्रतिमानों में करें संशोधन श्रीमान / शिव ओम अम्बर
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उन प्रतिमानों में करें संशोधन श्रीमान,
इस बस्ती में अब कहाँ आदमकद इन्सान।
अप्रासंगिक हो गये हैं जीवन के मूल्य,
हर घर आज मकान है हर मकान दुकान।
उद्धरणों के संकलन की संज्ञा है शोध,
खुद को मौलिक कह रहे अनुवादित आख्यान।
आरक्षण करने लगा प्रतिभा का आखेट,
भ्रष्ट व्यवस्था गा रही - मेरा देश महान।
सुविधाओं के व्याकरण की कक्षा में बैठ,
खद्योतों की बन्दगी करता है दिनमान।
बेशक सच बोलें मगर ध्यान रहे हर वक़्त,
सुकरातों के भाग्य में अंकित है विषपान।