भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उपदेशसाहस्री / उपदेश २ / आदि शंकराचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रैषेद्धुमशक्यत्वान् नेति नेतीति शेषितम्।
इदं नाहमिदं नाहमित्यद्धा प्रतिपद्यते॥

इदंधीरिदमात्मोत्था वाचारम्भञगोचरा।
निषिद्धात्मोद्भवत्वात् सा न पुनर्मानतां व्रजेत्॥

पूर्वबुद्धिमबाधित्वा नोत्तरा जायते मतिः।
दृषिरेकः स्वयंसिद्धः फलत्वात् स न बाध्यते॥

इदंवनमतिक्रम्य शोकमोहादिदूषितम्।
वनाद् गन्धारको यद्वत् स्वमात्मानं प्रपद्यते॥