बड़े चाव से
चंदन घिसते चले जाते हैं
छोटी बड़ी लाइन के
चरित्र के उपन्यास
यथार्थ की पटरी
जगह-जगह टूटी है
रचनाकाल: २५-११-१९६८
बड़े चाव से
चंदन घिसते चले जाते हैं
छोटी बड़ी लाइन के
चरित्र के उपन्यास
यथार्थ की पटरी
जगह-जगह टूटी है
रचनाकाल: २५-११-१९६८