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उपमेय / सुरेन्द्र डी सोनी
Kavita Kosh से
कालिदास से लेकर अब तक
चाँद से इतनी बार ढका है
तुमने मेरा चेहरा
कि मैं ग्रहण की शिकार धरती-सी
जान ही न पाई अपना चेहरा...
उपमाएँ कितनी बेरहमी से
ख़त्म कर देती हैं उपमेय का सौन्दर्य..!