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उपराग / शारदा झा

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हे यौ,
भेटल अहाँक समाद
आ उपराग सेहो
छुट्टी त' बेस बीति गेल
मुदा एकहि ठाम रहितहुँ
भेंट प्रेमी-प्रेमिकाए जकाँ भेल
चौल करैत, नुकाइत- चोराइत!
छल आइ हाथ मे समय
जकरा बचा क' रखने छलहुँ
अहाँक मोन मे फेर सँ
हरारति जगब' लेल
मुदा, कवि जी
फँसल रहि गेलहुँ हम
महमह करैत कटहरक
कोआ छोड़ाब' मे
बूझल अछि हमरा
खूब अबैए अहाँकेँ
सुअदगर आ मिठ्ठ बात बनब'
जाहि सँ हमर मोन
आ आत्मा रहैए तिरपित
सदति उल्लास आ प्रेम सँ गछारल
जेना चार पर तिलकोरक लत्ती
फोका मखान सन
हमर मोन भ' जाइए ढेसर
जहन हमर बनाओल 'ग्रीन टी'
लगैत अछि अहाँकेँ दीब
कहाँ किछुओ दैत छियै
हम ओहि मे
अपन प्रेम छोड़ि क'?
जमीरी नेबो सन हमर प्रीति अछि
जकरा सुआदि क' अहाँ पिबैत छी
बनबैत रहै छी,
राहरिक उसना आ आलू-कुम्हरौरी
नियारि क', दीन ताकि क'
एहने विशिष्ट वस्तु सब
अछि अहाँक पसीन
जेना बेलक पात आ धथूरक फर
छन्हि भोलेनाथ केँ
कत' पाओत मोन एहेन शाँति
जे समर्पण मे भेटैत अछि
आ, जँ हम बिलायब नहिं
त' अहाँ ताकब कोना?
बेस यैह रंग बनल रहए
हमर धरती आ अकासक
नील आ हरियर
भोरुकबा सुरुज सन लाल
कनैल सन पियर कपीस
आ अहाँक मोन सन धनुक
प्रेम आ जीवन सँ
छुट्टी कत'?
आ हम जँ ल'ग मे आबि
बैसि रहितहुँ
त' कवि जी,
हम ई प्रेमसिक्त उपराग
कत' सँ पबितहुँ?