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उपलब्धियों के शिखर / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
बहुत कुछ खोकर मिले
उपलब्धियों के ये शिखर.
गाँव छूटा
परिजनों से दूर
ले आई डगर,
खो गयी अमराइयाँ
परिहास की
वे दोपहर,
मार्ग में आँखें बिछाए
है विकल सा वृद्ध घर.
हर तरफ
मुस्कान फीकी
औपचारिकता मिली,
धरा बदली
कली मन की
है अभी तक अधखिली,
कभी स्मृतियाँ जगातीं
बात करतीं रात भर.
भावनाओं की गली में
मौन के
पहरे लगे हैं,
भोर सी बातें नहीं
बस स्वार्थ के ही
रतजगे हैं,
चंद सिक्के बहुत भारी
जिंदगी के गीत पर.