भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उपहार / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कत्थई महुआ
नहीं है छाँह पत्ते की जिसे
लू की उमड़ती हुई लहरें
झेलता है

डालियों के बढ़े हुए कूचों में
अधखिली कलियाँ सँभाले
जान पड़ता है
संध्या की
रात की
शीतल पवन की
और तारों के चुहल आकाश की
आकुल प्रतीक्षा कर रहा है

जिन्हें अपने फूल का
उपहार देना है
उसे ।