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उपेक्षा-अपेक्षा / प्रकीर्ण शतक / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
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अरसिक लग कविताक रस, केतुक सिर जनु पाग
आन्हर लग लावन्य जनु, बहिर कान पुनु राग।।1।।
ने तरु - फल, ने गुल्म - दल, ने लतिका केर फूल
जेहि वन-उपवन सुलभ नहि, वरु भरु से मरु - धूल।।2।।
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बिनु दृग रूप निरूपणेँ बिनु रसना रस भोग
बिनु सहृदय आस्वादनेँ फलित न कवित प्रयोग।।3।।
हमर भोज, विक्रम हमर सरवस रसिक - समाज
रजत कनक रज कन लुलित, कवित रतन सिर ताज।।4।।