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उफ़क / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
उफ़क के पार उजाले के किनारे के परे
जहाँ तू नहीं और तेरा तसव्वुर भी नहीं,
कोई ख़ुशबू, कोई आवाज़, कोई रंग नहीं
कोई अहसास, कोई दर्द, कोई रंज नहीं,
कुछ तो है जो दिल में उतर आता है
सिर्फ़ तू ही, बस तू ही नज़र आता है।