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उभयचर-22 / गीत चतुर्वेदी

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अच्छी चीज़ों से जुड़ा सबसे बड़ा विकार है कि उन्हें इतनी बार दुहराया जाता है
कि उनका होना एक मामूली होना हो जाता है कि उनकी अच्छाई एक उबाऊ अच्छाई में बदल जाती है
इस तरह एक दिन उनके अच्छा होने को मानना इंकार कर दिया जाता है
जो बार-बार सुनना चाहते हैं कि मैं अच्छा आदमी हूं, वे दरअसल अच्छेपन की परिधि से बाहर बैठते हैं
मैं अपनी नींद के सिरहाने बैठ स्वप्न लिखता उनकी वर्तनियां दुरुस्त करता व्याकरण को जांचता खुला छोड़ता
और मुंह में फूंक मार उनमें जीवन भरता
सारे स्वप्न जीवन थे और सारा जीवन स्वप्न था
सारी प्रज्ञाएं दरअसल विशाल प्रकाशपिंडों से फूटती अंधेरे की किरणें थीं
मेरे स्वप्नों की मृत्यु हो गई है मेरी रातें विधवाओं-सा विलाप करती हैं
मेरी इच्छाओं को लगभग पंगु बनाते हुए
मेरे भीतर भय की पुस्तिकाएं हैं वायु का खंड-काव्य खंडित काव्य
जल का श्लोक निर्जलता का शोक
उस लाश की आंखें खुली थीं जैसे कोई कंप्यूटर को शटडाउन करना भूल गया हो
दुख का प्रपात अवसाद का बोगनवीलिया थोड़ा गुल था थोड़ा आब
जाने कौन-सा वायरस है जो उदासी में घुसता है उदासीन बना देता है
वे फूल जिनकी प्रजातियां लुप्त हो गईं इसलिए कि हमने उनके जैसा होने की कामना बंद कर दी थी