भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उभयचर-26 / गीत चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
एक साथ न जाने कितने युग चल रहे हैं : पृष्ठ पर मुख्य युग का पाठ है : पृष्ठभूमि में कितने तो पढ़े हुए और भूल चुके भी पाठ हैं : मैं मुख्य युग को पढ़ता और दूसरी लाइन पर लगे एस्टेरिस्क को देख फुटनोट पर बसे दूसरे युग में पहुंच जाता : फुटनोट में भी एस्टेरिस्क लगे हैं : जिन्हें खोजता मैं अनुषंगिका में चला जाता : वहां से कालक्रम और समय-निर्देशिकाओं में : फिर कोई एस्टेरिस्क पहुंचा देता अनुक्रमणिका तक : वहां से लौटता यह सोचते हुए कि किस युग में था मैं : कहां से शुरू किया था युगों के पाठ का यह सफ़र : जो तय है कि ऐसे ही चलेगा : तो बताओ, ऐसा, कैसे चलेगा