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उभरी नसों वाला तुम्हारा हाथ / फ़ेरेन्स यूहास / गिरधर राठी
Kavita Kosh से
किताबों के ढेर पर तुम्हारा नन्हा-सा हाथ
जैसे किसी पोस्टकार्ड पर पेंसिल की खरोंच
नन्हा-सा, उभरी नसों वाला खेतीहर हाथ
चित्तियों वाला, स्याही से गुदा, खुरदरा...
झुर्री पर, चमड़ी पर, रक्त की नलियों पर
तीर रौशनी के हैं :
अनगिनत बेचैन कुनमुनाते हृदयों के
विस्मय का स्रोत !
खड़िया की लिखत
तुम्हारी अबाबील उँगलियों में थिरक उठती है
सुबह की तरह चमक उठता है एक विचार
और हर मेधा
पत्थर की मूर्ति की तरह रूप पा लेती है
भविष्य के लिए हरेक कर्म में, विचार में !
अँग्रेज़ी से अनुवाद : गिरधर राठी