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उमड़ि घुमड़ि घन लीनो है चहूँधा घेरि / सोमनाथ

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उमड़ि घुमड़ि घन लीनो है चहूँधा घेरि ,
शोर भयो धुरवा जवा से जूथ जरिगे ।
डह डहे भये द्रुम रंचक हवा के गुन ,
कुहू कुहू मोरवा पुकारि मोद भरिगे ।
रहि गये चातक जहाँ के तहाँ देखत ही ,
सोमनाथ कहूँ बूँदा बूँदी हू न करिगे ।
शोर भयो घोर चहुँ ओर महि मँडल मे ,
आये घन आये घन आयकै उघरिगे ।


सोमनाथ का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।