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उमड़े हुए अश्कों को रवानी नहीं देता / साग़र पालमपुरी
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उमड़े हुए अश्कों को रवानी नहीं देता
अब हादसा भी कोई कहानी नहीं देता
तन्हाई के सहरा में हवा का कोई झोंका
बचपन की कोई याद पुरानी नहीं देता
ये वक़्त है ज़ालिम कि मेरे माँगने पर भी
लौटा के मुझे मेरी जवानी नहीं देता
हैरत है कि इस दौर में समझें जिसे अपना
वो ग़म के सिवा कोई निशानी नहीं देता
मशहूर थी जिस शहर की मेहमान नवाज़ी
प्यासों को वहाँ अब कोई पानी नहीं देता
‘साग़र’! है तमन्ना कि ग़ज़ल हम भी सुनायें
मौसम ही कोई शाम सुहानी नहीं देता