Last modified on 3 अप्रैल 2020, at 23:11

उमड़ जब अश्क़ कोई ख़्वाब आँखों से चुराता है / रंजना वर्मा

उमड़ जब अश्क़ कोई ख़्वाब आँखों से चुराता है।
कोई ग़म याद आता है कोई ग़म भूल जाता है॥

कली खिलती चमन में तो बिखरती हर तरफ़ खुशबू
बंधा अनजान डोरी से भ्रमर उस ओर जाता है॥

पहाड़ों से निकल कर के नदी दौड़ी चली आती
इशारे दूर से कर के उसे सागर बुलाता है॥

निकल आयी अकेली बूँद पीछे छोड़ मेघों को
चमकती बिजलियों को देख बादल गड़गड़ाता है॥

उड़ा करतीं उमंगे तितलियों से पर रँगीले ले
मगर तकदीर का पंछी विकल पर फड़फड़ाता है॥

कोई जब याद दिल में है कसकती एक काँटे सी
तुम्हारा रूप जाने क्यों नज़र में झिलमिलाता है॥

अँधेरी रात में पिय को पपीहा टेरता रहता
तुम्हारा प्यार जुगनू-सा हृदय में टिमटिमाता है॥