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उमस / साधना सिन्हा
Kavita Kosh से
छत है खुली
पर अन्दर
उमस है
अनाम संवेदनायें
मुखर होने से पहले
पिघल रही हैं
उमस में !
बाहर
निकलने के
दरवाज़े बनाओ अनेक
आदमकद घुटन
दरवाज़ों से बड़ी है
तोड़ो दीवारें
ठंडी हवा, बारिश
खुला आसमान
उमस को
कम करे
हम सब बाहर निकलें
उमस से बचा
एक-आध घर तो कहीं होगा ।