भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उमस / साधना सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


छत है खुली
पर अन्दर
उमस है

अनाम संवेदनायें
मुखर होने से पहले
पिघल रही हैं
उमस में !
 
बाहर
निकलने के
दरवाज़े बनाओ अनेक
आदमकद घुटन
दरवाज़ों से बड़ी है
 
तोड़ो दीवारें
ठंडी हवा, बारिश
खुला आसमान
उमस को
कम करे
 
हम सब बाहर निकलें
उमस से बचा
एक-आध घर तो कहीं होगा ।