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उम्मीदे-अमन क्या हो याराने-गुलिस्ताँ से / सीमाब अकबराबादी



उम्मीदे-अमन क्या हो याराने-गुलिस्ताँ से।
दीवाने खेलते है अपने ही आशियाँ से॥

बिजली कहा किसी ने, कोई शरार समझा।
इक लौ निकल गई थी, दागे़-ग़मे-निहाँ से॥