उम्मीदे-अमन क्या हो याराने-गुलिस्ताँ से।
दीवाने खेलते है अपने ही आशियाँ से॥
बिजली कहा किसी ने, कोई शरार समझा।
इक लौ निकल गई थी, दागे़-ग़मे-निहाँ से॥
उम्मीदे-अमन क्या हो याराने-गुलिस्ताँ से।
दीवाने खेलते है अपने ही आशियाँ से॥
बिजली कहा किसी ने, कोई शरार समझा।
इक लौ निकल गई थी, दागे़-ग़मे-निहाँ से॥