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उम्मीद भी किरदार पे पूरी नहीं उतरी / मुनव्वर राना
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उम्मीद भी किरदार पे पूरी नहीं उतरी
ये शब <ref>रात</ref>दिले-बीमार पे पूरी नहीं उतरी
क्या ख़ौफ़ <ref>भय</ref>का मंज़र<ref>दृश्य</ref>था तेरे शहर में कल रात
सच्चाई भी अख़बार में पूरी नहीं उतरी
तस्वीर में एक रंग अभी छूट रहा है
शोख़ी अभी रुख़सार<ref>गाल</ref>पे पूरी नहीं उतरी
पर<ref>पंख</ref>उसके कहीं,जिस्म कहीं, ख़ुद वो कहीं है
चिड़िया कभी मीनार पे पूरी नहीं उतरी
एक तेरे न रहने से बदल जाता है सब कुछ
कल धूप भी दीवार पे पूरी नहीं उतरी
मैं दुनिया के मेयार <ref>मानक, मानदण्ड</ref>पे पूरा नहीं उतरा
दुनिया मेरे मेयार पे पूरी नहीं उतरी
शब्दार्थ
<references/>