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उम्मीद सभी को है कि इस बार लकीरें / सर्वत एम जमाल
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उम्मीद सभी को है कि इस बार लकीरें
कुछ और दिखाने को हैं तैयार लकीरें
हर शख़्स किसी तौर मिटाने पे तुला है
चेहरे पे हुईं जब से नमूदार लकीरें
कब, किसको कमी अपनी नज़र आई यहाँ पर
सब मान चुके हैं कि खतावार लकीरें
आँगन हो कि फ़सलें हों कि सरहद हो, कहीं भी
फ़न अपना दिखा जाती हैं फ़नकार लकीरें
आए हैं बड़ी शान से मंडी में ख़रीदार
इस बार किसे लाई है बाज़ार लकीरें
हर मुल्क समझता है कि सब ठीक है लेकिन
नक्शों में छुपी रहती हैं गद्दार लकीरें
औरों की हथेली पे लुटा देती है सब-कुछ
कब अपने लिए होंगी वफ़ादार लकीरें
सर्वत किसी इन्सां को लकीरों से न परखो
हर हाथ में होती हैं अदाकार लकीरें