वे कहते हैं 
दुनिया टिकी है शेषनाग के फन पर,
दुनिया कायम है उम्मीद पर, 
मैं कहती हूँ 
आशा और निराशा के 
संतुलन का नाम ही 
उम्मीद है 
दुनिया नहीं टिकी शेषनाग के फन पर
यह स्थिर है 
आशा और निराशा के संतुलन पर
इन दोनों के मध्य 
बिछी है उम्मीद की नर्म जमीन,
जिस पर बोती हूँ मैं 
आशाओं के बीज
प्रेम के बीज
सद्भावना के बीज 
यकीन के चमचमाते चेहरे पर  
मैं पढना चाहती हूँ  
लिखी हुई ये खुशनुमा इबारत
कि एक दिन उम्मीदों की जमीन पर
लहलहाएगी खुशियों 
की सब्ज़ फसल,
ये सच है मेरी उम्मीद का एक पांव 
कहीं खो जाता है 
वह अक्सर डगमगाती है,
आधे अधूरे धरातल पर 
तलाशती है समतल जमीन
देखती है दुनिया को 
उम्मीद भरी आँखों से, 
एमिली डिकिन्सन कहती हैं 
"उम्मीद पंख वाली एक चीज़ है 
जो आत्मा में बसेरा करती है"
मेरी आत्मा के द्वार पर 'स्वागत' लिखा है,
अतीत के बाग़ से चुनते हुए सबक के खट्टे-मीठे फल,   
अपनी असफलताओं की छाती पर पांव जमाकर चलते हुए 
दिनोदिन डगमगाते विश्वास के साथ भी 
मैं उम्मीद का दामन थामे रखना चाहती हूँ 
उम्मीद रोटी, कपडे और मकान की जद्दोजहद से  
दुनिया के उबरने जाने की, 
उम्मीद मशीन में तब्दील होते इन्सान के जिस्म में 
धड़कते दिल के साबूत बचे रह जाने की,
उम्मीद खुली छत पर एक ताज़ा सुबह 
गौरैय्याओं की चहचहाहट से नींद के खुलने की,
उम्मीद खोखले होते पहाड़ों से अब भी गूंजते, 
सूरज की पहली किरण से, मधुर गीतों के गुंजन की,
उम्मीद स्कूल से लौटते नन्हे बच्चों के खिले चेहरे और 
खाली पीठ की, 
उम्मीद  शब्दकोशों से आतंक, भय और बलात्कार 
जैसे शब्दों के लुप्त हो जाने की
आज मैं फिर मैं उम्मीद का दरवाजा खटखटा रही हूँ...