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उम्मीद / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
चिड़ियों को भात खिलाते हुए माँ
माँगती है प्रतिदिन दो वक्त्त की रोटी
बच्चों के लिए लम्बी उम्र वाला बुढ़ापा
अपने लिए स्वर्ग की सीढ़ियाँ
सूरज को पानी पिलाते हुए
आग माँगते हैं पिता सिर्फ आग
जब भी आता है पत्नी का
आधा-अधूरा चाँद
वह सपनों के अतिरिक्त
कुछ नहीं माँग पाती
बहुत बार सोचता हूँ-
क्यों खेलते थे हम बचपन में
राजा-रानी का खेल
क्यों बनाते थे-
माचिस की डिबिया का टेलीफोन
क्यों चलाते थे-
साइकिल का टूटा हुआ पहिया
क्यों बनाते थे-
मिट्टी के, रेत के घर।