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उम्र का रास्ता ढलान पे है / श्याम कश्यप बेचैन
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उम्र का रास्ता ढलान पे है
हौसला फिर भी आसमान पे है
मेरी रग-रग में अब भी पहले-सी
इक पहाड़ी नदी उफ़ान पे है
लड़खड़ाने लगी शराबी-सी
नाम किसका मेरी जुबान पे है
एक दिन हो तो कोई बात नहीं
रोज़ आफ़त हमारी जान पे है
कितना दिल का अमीर है वो भी
मुफ़लिसी में भी अपनी आन पे है
तेरी बातों के मैं खि़लाफ़ नहीं
उज्र तो तर्ज़-ए-बयान पे है
थक के सोने चला गया सूरज
इक परिंदा मगर उड़ान पे है