उम्र की शाम है और दिल मेरा बचपन माँगे
फिर वह आँगन, वही सावन ,वही गुलशन माँगे
आज के दौर में हर शख़्स नयापन माँगे
रूह जर्जर हो भले शक्ल पर रोग़न माँगे
हो के आज़ाद तो हासिल हुई बस तनहाई
अब ये दिल फिर वही क़ुर्बत ,वही बंधन माँगे
इसको दौलत की ज़रूरत है न शुहरत की तलब
ज़ीस्त की रेल तो बस प्यार का ईंधन माँगे
देख कर रोज़ लड़ाई की ख़बर टी वी पर
अब तो बच्चा भी खिलौने की जगह गन माँगे
मेरे अंदर कोई मासूम-सा बच्चा है जो
आज भी माँ के ही आँचल का नशेमन माँगे
इक झलक देख सके झाँक के गुज़रे लम्हे
दिल मेरा वक़्त की दीवार पर रौज़न माँगे
एक आँसू मेरी पलकों पर है अटका ‘मधुमन ‘
वो छलकने के लिए बस तेरा दामन माँगे