भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उम्र बस बढ़ती गयी पर जीना क्यों कम हो गया / उदय कामत
Kavita Kosh से
उम्र बस बढ़ती गयी पर जीना क्यों कम हो गया
यार हैं कुछ कम नहीं, याराना क्यों कम हो गया
वो अदा, अंदाज़, इख़्लास-ओ-सलीक़ा अब कहाँ
शर्म आती तो है पर शर्माना क्यों कम हो गया
अब न गहराई रही रिश्तों में ना जज़्बात में
सब तआलुक रखते हैं, अपनाना क्यों कम हो गया
खेल था वह चील का, जज़्बा था बच्चों में अलग
काटते थे डोर सब, लहराना क्यों कम हो गया
या हुकूमत, या वह साक़ी, या वह वाइज़, दोस्तो
क्यों लगे हैं सब झुकाने, झुकना क्यों कम हो गया