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उम्र भर की सज़ा बन गई ज़िन्दगी / देवी नांगरानी
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उम्र भर की सज़ा बन गई ज़िन्दगी
जाल में साज़िशों के फँसी ज़िन्दगी
कुंडली भी दिखा दी सभी को मगर
राहतों से बहुत दूर थी ज़िन्दगी
लड़खड़ाई जुबाँ सच को कहते हुए
झूठ के सामने यूँ डरी ज़िन्दगी
बेवफाई का अहसास उसको हुआ
मौत के रू-ब-रू जब हुई ािजन्दगी
चीख़ती ही रहीं उसकी ख़ामोशियाँ
अनसुनी ही मगर रह गयी ज़िन्दगी
कुछ दवा, कुछ दुआ का असर देखिये
मौत को यूँ छकाती रही जि़न्दगी