उम्र भर को जुड़ गए हैं, आपसे जज़्बात मेरे.
साथ बस देते नहीं हैं, आजकल हालात मेरे,
ख़ुश्क आँखों का वो मंज़र देख कर ऐसा हुआ
अश्क़ लानत दे गए हैं क्या कहूँ कल रात मेरे,
सोचती हूँ आख़िरश बाहर निकलकर क्या करूँ
दम-ब-दम जलती ज़मीं ऑ सर पै ये बरसात मेरे,
दोनों हाथों से उठा कर फेंकती रहती हूँ बाहर,
हो गई घर में ग़मों की रात-दिन इफरात मेरे,
भूल सी जाती हूँ मैं सब, मेरी दुनियां क्या हुई ?
वहशतें सी कह रही हैं कान में कुछ बात मेरे!