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उम्र भर तो तिरी ख़िदमात ने रोने न दिया / उदय कामत
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उम्र भर तो तिरी ख़िदमात ने रोने न दिया
मौत में तल्ख़ी-ए-हालात ने रोने न दिया
हिज्र के वक़्त गले मिलके बहुत रोना था
उस घडी भर की मुलाक़ात ने रोने न दिया
राह में इश्क़ ने मुश्किल से मसाइल जो रखे
चुभते, नोकीले सवालात ने रोने न दिया
गीली मिट्टी की हमें याद सताने थी लगी
आई बरसात तो बरसात ने रोने न दिया
अब ना रोता है कोई संग किसी के भी यहाँ
इस सदाक़त से भरी बात ने रोने न दिया
जब हरम तक गया पाने को सुकूँ ऐ 'मयकश'
बे-असर, हाए, मुनाजात ने रोने न दिया