उम्र सारी / हरीश भादानी
उम्र सारी इस बयाबां में गुजारी यारो!
सर्द गुमसुम ही रहा
हर साँस पे तारी यारो !
कोई दुनिया न बने
रंगे-लहू के खयाल,
गोया रेत ही पर
तस्वीर उतारी यारो!
उम्र सारी.....
देखा ही किए झील
वो समंदर, वो पहाड़,
अपनी हर आँख
सियाही ने बुहारी यारो !
उम्र सारी.....
जहाँ सड़क, गली
आँगन जैसे बाज़ार चले,
न चले, अपनी न चले
यहां असआरी यारो!
उम्र सारी.....
रहबरों तक गई
वो तलाश रहे साथ, सफ़र
उसकी आबरू
हर बार उतारी यारो !
उम्र सारी.....
हाँ, निढ़ाल तो हैं
पर कोई चलना तो कहे,
मन के पाँवों की
बाकी अभी बारी यारो !
उम्र सारी.....
उठके डूबे है कहीं
अपनी आवाज़ यहाँ
किसी आग़ाज़ से ही
सिलसिला जारी यारो !
उम्र सारी.....
अब जो बदलो तो कहीं
हो, गुनहग़ार हरीश
वही रंगत, वे ही दौर,
वही यारी यारो !
उम्र सारी इस बयाबां में गुजारी यारो !
सर्द गुम-सुम ही रहा
हर साँस पै तारी यारो !