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उर मेरा मेरे मनभावन! यह नित्य तुम्हारा ही घर है / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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उर मेरा मेरे मनभावन! यह नित्य तुम्हारा ही घर है।
स्वयमेव करो अधिकार यहाँ इसमें न कहीं कुछ भी पर है।
इसमें नाचो गाओ खेलो खुलकर न हटो प्रियतम पलभर।
जब सारी वस्तु तुम्हारी तो मैं न्यारी कहाँ रही प्रियवर।
अपनी अभागिनी राधा को हे वंशीधर! कब हेरोगे।
सूनी उर-कुटिया में आ कर कब परमानन्द बिखेरोगे।
संताप-नसावन! आ, विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥149॥