भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उलझन के पत्थरों से बनी वीथियों के बीच / अभिषेक कुमार सिंह
Kavita Kosh से
उलझन के पत्थरों से बनी वीथियों के बीच
ठहरे हुए हैं हम सभी मजबूरियों के बीच
कैसे रखूँ मैं अपने क़दम इनकी देह पर
सुस्ता रहे हैं रास्ते पगडंडियों के बीच
किस्मत की धुन पर रोज़ यहाँ नाचते हुए
हम ढूँढते हैं ख़ुद को ही कठपुतलियों के बीच
इन फासलों का आओ करें दिल से शुक्रिया
हम और पास आ गए हैं दूरियों के बीच
किसका वरण करे यहाँ और किसको छोड़ दे
उलझी हुई है सभ्यता दो पीढ़ियों के बीच
उनकी खनक को रखना सदा ही सँभाल कर
उठती है प्रेम की सदा जिन चूड़ियों के बीच
आया है कोई तुझसा नज़र मुझको बाग़ में
इक फूल हँस रहा है जहाँ तितलियों के बीच